पहला प्रयोग हम करेंगे । थोड़े फासले पर बैठ जाएंगे। कोई किसी को छूता हुआ न बैठे। जरा-जरा
फासले पर, कोई किसी को छूता हुआ न हो। और आवाज जरा भी न करें। चुपचाप हट
जाएं। कहीं भी हट कर बैठ जाएं। आवाज मेरी सुनाई पड़ती रहे, बस इतना। और
बातचीत जरा भी न करें, किसी से। क्योंकि इस मामले में दूसरा कोई साथी
सहयोगी नहीं हो सकता।
और चुपचाप,
बात नहीं। अपनी-अपनी जगह पर, शरीर को बिलकुल शिथिल छोड़ कर। अब बातचीत नहीं
चलेगी जरा भी। बातचीत नहीं चलेगी अब, अब बातचीत बंद कर दें, बिलकुल शांत
बैठें, आंख बंद कर लें।
मैं कुछ सुझाव दूंगा। पहले मेरे सुझाव अनुभव करें और फिर धीरे से उसकी खोज में चले जाएं जो आपके ही भीतर है।
सबसे पहले सारे शरीर को शिथिल छोड़ दें। और ऐसा समझें कि जैसे शरीर है ही नहीं। ढीला छोड़ दें। जैसे मुर्दा हो शरीर। बिलकुल शिथिल छोड़ दें, रिलैक्स छोड़ दें। शरीर ढीला छोड़ दें, शरीर बिलकुल ढीला छोड़ दें। आंख बंद कर ली है, शरीर ढीला छोड़ दिया है। शरीर ढीला छोड़ दिया है, शरीर शिथिल छोड़ दिया है, शरीर बिलकुल शिथिल छोड़ दें।
अब श्वास भी बिलकुल धीमी छोड़ दें। धीमी करनी नहीं है, छोड़ दें, धीमी छोड़ दें। अपने आप आए-जाए, न आए न आए, न जाए न जाए। और जितनी आए, उतनी आए, उतनी जाए। छोड़ दें बिलकुल शिथिल। श्वास एकदम धीमी हो जाएगी। बहुत धीमी आएगी, जाएगी। इससे ऊपर ही अटक जाएगी। श्वास भी धीमी छोड़ दें।
शरीर शिथिल छोड़ दिया। श्वास धीमी छोड़ दी। अब अपने ही भीतर, वह जो सबसे दूर खड़ा है, ये आवाजें आ रही हैं, ये सुनाई पड़ेंगी। आप सुन रहे हैं, आप अलग हैं, आप भिन्न हैं, आप दूसरे हैं। मैं और हूं, जो भी हो रहा है, मेरे चारों तरफ, चाहे मेरे शरीर के बाहर, चाहे मेरे शरीर के भीतर, जो भी हो रहा है, सब मुझसे बाहर है। बिजली चमकेगी, पानी गिर सकता है, आवाजें आएंगी, शरीर शिथिल हो जाएगा, शरीर गिर भी सकता है। सब मेरे बाहर है, सब मेरे बाहर है। मैं अलग हूं, मैं अलग हूं। मैं अलग खड़ा हूं, मैं देख रहा हूं, यह सब हो रहा है।
मैं एक द्रष्टा से ज्यादा नहीं। मैं एक साक्षी हूं। सिर्फ साक्षी हूं। मैं एक साक्षी हूं, मैं एक साक्षी हूं। मैं देख रहा हूं। सब है, सब मुझसे बाहर है। सब हो रहा है, सब मुझसे दूर हो रहा है। मैं दूर खड़ा हूं, अलग खड़ा हूं, ऊपर खड़ा हूं, भिन्न खड़ा हूं। मैं सिर्फ देख रहा हूं। मैं सिर्फ जान रहा हूं। मैं सिर्फ साक्षी हूं। मैं साक्षी हूं, इसी भाव में गहरे से गहरे उतरें। दस मिनट के लिए मैं चुप हो जाता हूं। आप इसी भाव में गहरे से गहरे उतरें...एक-एक सीढ़ी, एक-एक सीढ़ी गहरे...।
मैं साक्षी हूं, मैं सिर्फ जान रहा हूं, मैं सिर्फ जान रहा हूं। जो हो रहा है, जान रहा हूं, मैं सिर्फ साक्षी हूं। और यह भाव गहरा होते-होते इतनी गहरी शांति में ले जाएगा जिसे कभी नहीं जाना। इतने बड़े मौन में ले जाएगा जो बिलकुल अपरिचित है। इतने बड़े आनंद में डुबा देगा जिसकी हमें कोई भी खबर नहीं। मैं साक्षी हूं, मैं साक्षी हूं, मैं बस साक्षी हूं...। -
मैं कुछ सुझाव दूंगा। पहले मेरे सुझाव अनुभव करें और फिर धीरे से उसकी खोज में चले जाएं जो आपके ही भीतर है।
सबसे पहले सारे शरीर को शिथिल छोड़ दें। और ऐसा समझें कि जैसे शरीर है ही नहीं। ढीला छोड़ दें। जैसे मुर्दा हो शरीर। बिलकुल शिथिल छोड़ दें, रिलैक्स छोड़ दें। शरीर ढीला छोड़ दें, शरीर बिलकुल ढीला छोड़ दें। आंख बंद कर ली है, शरीर ढीला छोड़ दिया है। शरीर ढीला छोड़ दिया है, शरीर शिथिल छोड़ दिया है, शरीर बिलकुल शिथिल छोड़ दें।
अब श्वास भी बिलकुल धीमी छोड़ दें। धीमी करनी नहीं है, छोड़ दें, धीमी छोड़ दें। अपने आप आए-जाए, न आए न आए, न जाए न जाए। और जितनी आए, उतनी आए, उतनी जाए। छोड़ दें बिलकुल शिथिल। श्वास एकदम धीमी हो जाएगी। बहुत धीमी आएगी, जाएगी। इससे ऊपर ही अटक जाएगी। श्वास भी धीमी छोड़ दें।
शरीर शिथिल छोड़ दिया। श्वास धीमी छोड़ दी। अब अपने ही भीतर, वह जो सबसे दूर खड़ा है, ये आवाजें आ रही हैं, ये सुनाई पड़ेंगी। आप सुन रहे हैं, आप अलग हैं, आप भिन्न हैं, आप दूसरे हैं। मैं और हूं, जो भी हो रहा है, मेरे चारों तरफ, चाहे मेरे शरीर के बाहर, चाहे मेरे शरीर के भीतर, जो भी हो रहा है, सब मुझसे बाहर है। बिजली चमकेगी, पानी गिर सकता है, आवाजें आएंगी, शरीर शिथिल हो जाएगा, शरीर गिर भी सकता है। सब मेरे बाहर है, सब मेरे बाहर है। मैं अलग हूं, मैं अलग हूं। मैं अलग खड़ा हूं, मैं देख रहा हूं, यह सब हो रहा है।
मैं एक द्रष्टा से ज्यादा नहीं। मैं एक साक्षी हूं। सिर्फ साक्षी हूं। मैं एक साक्षी हूं, मैं एक साक्षी हूं। मैं देख रहा हूं। सब है, सब मुझसे बाहर है। सब हो रहा है, सब मुझसे दूर हो रहा है। मैं दूर खड़ा हूं, अलग खड़ा हूं, ऊपर खड़ा हूं, भिन्न खड़ा हूं। मैं सिर्फ देख रहा हूं। मैं सिर्फ जान रहा हूं। मैं सिर्फ साक्षी हूं। मैं साक्षी हूं, इसी भाव में गहरे से गहरे उतरें। दस मिनट के लिए मैं चुप हो जाता हूं। आप इसी भाव में गहरे से गहरे उतरें...एक-एक सीढ़ी, एक-एक सीढ़ी गहरे...।
मैं साक्षी हूं, मैं सिर्फ जान रहा हूं, मैं सिर्फ जान रहा हूं। जो हो रहा है, जान रहा हूं, मैं सिर्फ साक्षी हूं। और यह भाव गहरा होते-होते इतनी गहरी शांति में ले जाएगा जिसे कभी नहीं जाना। इतने बड़े मौन में ले जाएगा जो बिलकुल अपरिचित है। इतने बड़े आनंद में डुबा देगा जिसकी हमें कोई भी खबर नहीं। मैं साक्षी हूं, मैं साक्षी हूं, मैं बस साक्षी हूं...। -
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